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रेबीज से जंग का बिगुल – एम्स ऋषिकेश से गूंजी जीत की गूंज

  • लेखक की तस्वीर: Uttarakhandnews Network
    Uttarakhandnews Network
  • 24 जुल॰
  • 1 मिनट पठन

ऋषिकेश/हर साल हजारों जानें निगल जाने वाली जानलेवा बीमारी रेबीज अब काबू से बाहर नहीं – बशर्ते टीकाकरण समय पर हो और जन-जागरूकता को मिशन मोड पर चलाया जाए। एम्स ऋषिकेश में आयोजित सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) में देशभर के चिकित्सा और पशु चिकित्सा विशेषज्ञों ने इस दिशा में ठोस रणनीति तय करते हुए कहा – “रेबीज का खात्मा अब सपना नहीं, बस संकल्प चाहिए।”


वन हेल्थ अप्रोच – इंसान और पशु स्वास्थ्य की साझी लड़ाई

सामुदायिक चिकित्सा विभाग और सेंटर फॉर एक्सीलेंस वन हेल्थ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस सीएमई में विशेषज्ञों ने चेताया कि यह सिर्फ एक बीमारी नहीं, बल्कि एक बहुआयामी संकट है। रायबरेली एम्स के सीएफएम विभागाध्यक्ष प्रो. भोला नाथ ने कहा –

"दुनिया में हर साल 50 हजार से ज्यादा मौतें, भारत में 37 लाख डॉग बाइट केस… अब चुप बैठने का वक्त नहीं।"


“मिशन मोड पर जागरूकता जरूरी” – प्रो. मीनू सिंह

एम्स की कार्यकारी निदेशक प्रो. मीनू सिंह ने कहा –

"रेबीज का खात्मा तभी संभव है, जब टीकाकरण में कोई चूक न हो और जागरूकता को गांव-गांव तक पहुंचाया जाए। पशु-मानव स्वास्थ्य के रिश्तों को समझकर ही हम जीत सकते हैं।”


विशेषज्ञों के ठोस सुझाव:


आवारा और पालतू पशुओं का नियमित टीकाकरण


जागरूकता अभियान को शहर से गांव तक फैलाना


रेबीज जांच व लैब नेटवर्क को मजबूत करना



एम्स के डीन एकेडमिक प्रो. जया चतुर्वेदी, डीन रिसर्च प्रो. शैलेन्द्र हाण्डू, चिकित्सा अधीक्षक प्रो. सत्या श्री, सीएफएम हेड प्रो. वर्तिका सक्सेना, वन हेल्थ प्रोजेक्ट नोडल अधिकारी डॉ. महेन्द्र सिंह समेत कई विशेषज्ञों ने कहा कि इन उपायों से रेबीज को 2030 तक समाप्त करना संभव है।

 
 
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