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IBD से मुकाबले में इंदिरेश बना मरीजों का सशक्त साथी

  • लेखक की तस्वीर: Uttarakhandnews Network
    Uttarakhandnews Network
  • 19 मई
  • 2 मिनट पठन

देहरादून। विश्व इंफ्लेमेटरी बॉवेल डिज़ीज़ (IBD) दिवस 2025 के उपलक्ष्य में श्री महंत इंदिरेश अस्पताल, देहरादून के मेडिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग द्वारा एक व्यापक रोगी जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया। इस अवसर पर 50 से अधिक मरीजों और उनके परिजनों ने भाग लेकर IBD के समय पर निदान, उपचार और जीवनशैली प्रबंधन के महत्व को समझा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. अमित सोनी ने की। उन्होंने प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए इस वर्ष की थीम “IBD Has No Borders: Breaking Taboos, Talking About It” पर प्रकाश डाला। डॉ. सोनी ने कहा, “IBD केवल शारीरिक बीमारी नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक चुनौती भी है। इसके बारे में खुलकर बात करना और सतत सहयोग प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है।”

उन्होंने बताया कि IBD जैसे अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोहन डिज़ीज़ के लक्षणों की सही जानकारी होना जरूरी है। “कई बार मरीज मल में खून आने जैसे लक्षणों को बवासीर समझ कर वर्षों तक गलत इलाज कराते रहते हैं। कोलोनोस्कोपी कराने पर ही सही निदान हो पाता है। समय पर जांच और उपचार से जटिलताओं से बचा जा सकता है,” डॉ. सोनी ने कहा।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि IBD का उपचार दीर्घकालिक होता है, जिसमें नियमित दवा, मानसिक सहयोग, आहार मार्गदर्शन और परामर्श की जरूरत होती है। अस्पताल का गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग इस दिशा में निरंतर कार्यरत है और मरीजों को व्यापक सहायता प्रदान करता है।

शिविर के दौरान उपस्थित मरीजों ने खान-पान, flare-up के दौरान आहार, azathioprine जैसी इम्यूनो-सप्रेसिव दवाओं के दुष्प्रभावों, और संक्रमण से बचाव जैसे मुद्दों पर अपने सवाल रखे। डॉ. सोनी ने सभी प्रश्नों का सरल और वैज्ञानिक ढंग से समाधान किया।

इस कार्यक्रम में विभाग के वरिष्ठ रेज़िडेंट्स – डॉ. पवन मौर्य, डॉ. चैतन्य गुप्ता और डॉ. उत्कर्ष – ने भी सक्रिय भागीदारी निभाई। उन्होंने रोगियों के साथ संवाद कर IBD से जुड़ी भ्रांतियों को दूर किया और उन्हें प्रेरित किया कि सही जानकारी और उपचार से IBD के साथ भी एक सामान्य और संतुलित जीवन संभव है।

यह जागरूकता शिविर न केवल ज्ञानवर्धक रहा, बल्कि रोगियों को आत्मविश्वास और सशक्तता की भावना से भी ओतप्रोत किया। यह पहल डॉक्टर और मरीज के बीच विश्वासपूर्ण संवाद की मिसाल बन गई।

 
 
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