संस्कृत विभाग के आयोजन में चमका गुरुकुल कांगड़ी का गौरव, दयानन्द के विचारों पर हुई राष्ट्रीय विमर्श की गूंज
- Uttarakhandnews Network
- 11 घंटे पहले
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हरिद्वार। गुरुकुल कांगड़ी (सम विश्वविद्यालय) के संस्कृत विभाग की ओर से आर्ष भारत पुनर्जागरण के नायक : महर्षि दयानन्द सरस्वती” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी विश्वविद्यालय के दयानन्द सभागार में सम्पन्न हुई, जिसमें देशभर से शिक्षाविद्, शोधार्थी एवं छात्र-छात्राएँ शामिल हुए।
कार्यक्रम का शुभारंभ वैदिक मंत्रोच्चार एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ।
मुख्य अतिथि प्रो. प्रकाश सिंह ने कहा कि महर्षि दयानन्द सरस्वती केवल धार्मिक सुधारक नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति के अग्रदूत थे। उन्होंने “वेदों की ओर लौट चलो” का जो आह्वान किया, वह भारतीय समाज में ज्ञान, विवेक और आत्मसम्मान के पुनर्जागरण का संदेश था। प्रो. सिंह ने कहा कि महर्षि दयानन्द ने नारी शिक्षा, समानता, स्वराज और स्वसंस्कृति की भावना को जन-जन तक पहुँचाया। उनके विचारों ने स्वतंत्रता आंदोलन को वैचारिक आधार प्रदान किया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. हेमलता कृष्णमूर्ति ने कहा कि महर्षि दयानन्द सरस्वती का उद्देश्य केवल धार्मिक सुधार तक सीमित नहीं था, वे सम्पूर्ण राष्ट्र के नैतिक और आध्यात्मिक पुनर्जागरण के पक्षधर थे। आज जब समाज भौतिकता के अंधकार में डूब रहा है, तब दयानन्द के “अविद्या निवारण” और “सत्य अनुसंधान” के सिद्धांत अत्यंत प्रासंगिक हैं। उन्होंने विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वे वेदों की भावना और आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को जीवन में अपनाएँ।
मुख्य वक्ता प्रो. सुरेन्द्र कुमार ने कहा कि महर्षि दयानन्द ने भारत में वैचारिक क्रांति की नींव रखी। उन्होंने शिक्षा को समाज परिवर्तन का सबसे प्रभावी माध्यम माना और नारी शिक्षा तथा जातिगत भेदभाव के उन्मूलन की दिशा में उल्लेखनीय योगदान दिया। प्रो. कुमार ने कहा कि भारतीय पुनर्जागरण में महर्षि दयानन्द का वही स्थान है, जो यूरोप में रूसो या लूथर का रहा।
संगोष्ठी अध्यक्ष प्रो. ब्रह्मदेव ने कहा कि ऐसे आयोजन विश्वविद्यालय की शैक्षणिक परंपरा को सुदृढ़ करते हैं। उन्होंने बताया कि संगोष्ठी में प्रस्तुत शोधपत्रों में महर्षि दयानन्द के दार्शनिक, सामाजिक और शैक्षिक योगदान पर गहन विचार-विमर्श किया गया। संस्कृत विभाग ने अपने परिश्रम और अनुशासन से इस आयोजन को सफल बनाया।
प्रो. अंजली गोयल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि महर्षि दयानन्द सरस्वती का जीवन हमें यह सिखाता है कि सत्य के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति समाज को दिशा दे सकता है। उनका वेदप्रेम केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक जीवन-पद्धति का प्रतीक था।
संगोष्ठी के समापन सत्र में प्रतिभागियों और वक्ताओं को सम्मानित किया गया। संस्कृत विभाग के विद्यार्थियों ने वैदिक मंत्रोच्चार से कार्यक्रम का मंगल समापन किया।
विभागाध्यक्ष ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत करते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन, अतिथियों, वक्ताओं और सभी प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का समापन “वेदोऽखिलो धर्ममूलम्” के उद्घोष के साथ हुआ, जिससे पूरा सभागार श्रद्धा और प्रेरणा से गूंज उठा।
संगोष्ठी के दौरान महर्षि दयानन्द सरस्वती के वैदिक दर्शन, सामाजिक सुधार, शिक्षा दर्शन, महिला सशक्तिकरण और स्वतंत्रता चेतना में योगदान पर अनेक शोधपत्र प्रस्तुत किए गए।
प्रतिभागियों ने एक स्वर में कहा कि महर्षि दयानन्द सरस्वती आज भी भारत के लिए पथप्रदर्शक हैं — वे एक युगपुरुष थे जिन्होंने अंधकार से प्रकाश की ओर मानवता का मार्ग प्रशस्त किया।







